Monday 19 September 2011

एक छवि

 
सिर पर एक लंबी बादामी रंग कि टोपी, जिस्म पर एक बलैक कट स्लीव कि जैकेट
और जैकेट के नीचे ग्रे कलर का धारीदार कुर्ता। सफेद पजामा जो गर्द जम-जम कर मटमैला सा होने लगा है।

एक हाथ मे डंडा और उकडू बैठने कि अपनी ही अदा जो पूरे माहौल में जान ले आती है। माथै कि फूलती नस,और हाथों कि सिकुड़ती चमड़ी से उभरती नसें जिसमें उन्होनें मजबूती से पकड़ा हुआ है। एक धारदार नज़र जो रुई के फाहों पर जमी हुई है। हाथ अपनी ही लय में उठता है और डंडा रुई दूनने कि प्रक्रिया मे रच-बस जाता है।

इस दुनाई मे गर्माई कि अपनी ही पकड़ है, जो बारीक-बारीक फाहों को एक-दूसरे से चिपकाती और समतल बनाती जाती है। और एक नर्म बिछौने कि शक्ल मे तब्दील करती है। जिसमें सभी अपने जिस्म को सैफ रखना चाहते हैं उस मौसम मे जब जिस्म का रौंआ-रौंआ ठण्डी लहर कि वजह से कांटो कि तरह खड़ा होकर पूरे जिस्म मे चुभने लगता है ठीक एक पहाड़ी चूहे कि तरह।

हर किसी के बिछौने मे खुद के वजूद कि गंध बसती है। जिसमे कभी तो भिन्नी-भिन्नी चमेली कि खुशबु महकती है, कभी छोटे बच्चे कि दूध कि गंध जो दूसरी परछांई का भी अहसास कराती है, कभी कच्ची हल्दी और उबटन कि तेज़ महक जिससे सदियों पुरानी रिवायतें जुड़ी हैं कि बूटने लगे शरीर को अपने पास चाकू या माचिस रखना चाहिये ताकि अलाएँ-बलाएँ दूर रहें। जितनी गंध उतने बिस्तर जितने बिस्तर उतने शरीर। पर एक बात है इंसान चाहे कहीं भी घूम आये पर रात में वो अपना कोना अपना बिस्तर ही तलाशता है।

जब जब मेरी नज़र उन पर जाती है तो लगता है जैसे हर रुई पर पड़ती दूसरी मार अपने आप मे एक तेज़ी ले आई हो। वो बहुत संतुष्टी से अपने हुनर मे मसरुफ़ हैं। उनके पास ही बैठे उनके जोड़ीदार लिहाफ़ मे धागे डालने कि कारीगरी मे लगे हुए हैं जो कि इनकी सैम कोपी लगते हैं। वही कपड़े और वही हुनर को निखारने कि लगन। आस पास कि आवाज़ो का उन पर कोई असर दिखाई नही पड़ता पर जब कोई अपनी चप्पल या जूते को घसिटता हुआ उनके पास से गुज़रता है तो बड़े मियाँ एक नज़र भर उनको देखते हैं और फिर अपने आप मे मशगूल हो जाते हैं।

उनके डार्क ब्राउन रगं के जूतो के पास दो चाय के गिलास रखे हैं। जिसमे चाय कि एक बूँद किनारो तक आते आते पूरी तरह से सूख चुकि है। जिसे देखने पर लगता है कि इन्हें चाय पीये काफी समय गुज़र चुका है। उनके होठ भी ठण्ठी और सूखी हवा कि वजह से पपड़ाने लगे हैं। धूप उनके आधे चेहरे से पड़कर पूरे लिहाफ़ पर फैल रही है.......

यशोदा