Monday 3 October 2011

आओ, पूरी खाली है



कन्डेक्टर, "मेडम आगे खिसको।"

मेडम, “अरे भइया आगे कहां खिसकूँ।"

कन्डेक्टर, “अरे आगे पूरी खाली पड़ी है।"

अंदर से कई आवाजें, “अरे भइया कहां खाली पड़ी है। तूझे बड़ा दिख रहा है।"

कन्डेक्टर बाहर आवाज़ लगाते हुए, “मूलचंद...मूलचंद, पुष्पाभवन, शेखसराय, चिरागदिल्ली, अर्चना.... बैठो, बैठो, खाली है.... खाली है।"

अंदर से, “अब क्या सिर पर बिठायेगा भइया, भर तो गई।"

कन्डेक्टर, “अरी अम्मा खाली ले जाऊं क्या गाड़ी।"

अम्मा, “भइया क्यों यहां धूप मे परेशान कर रहे हो। एक तो इतनी गर्मी पड़ रही है। इस बार तो बारिश भी नहीं हुई।

एक आवाज़, “हां पिछली बार तो इतनी हुई थी के जल्दी सर्दी आ गई थी। इस बार तो बिलकुल भी नहीं पड़ी। राम जी भी खाम्खा मे दुख देते हैं।"

कन्डेक्टर सवारी अंदर करते हुए, “ओ भइया पैर अंदर करले, कोने से पकड़ों, चल भइया अंदर को खिसक जा।"

पहले से खड़ी सवारी, “अरे भइया इसमे कहां जगह है, अब बता कहां जायेगा।"

कन्डेक्टर, “चल भइया, यहीं खड़ा हो गया तू तो। अंदर को चल।"

अभी चड़ी सवारी, “यार, कहां को चलूं, नीचे पैर रखने की जगह नहीं है।"

अंदर वाले, “अरे यार, तू उसकी क्यों सुन रहा है। इनका तो रोज का काम है ये करने का, जब तूझे दिखे जगह तब अंदर घूस। नहीं तो यहीं खड़ा रहे।"

एक औरत, “ओ भइया मुंह पीछे को करके खड़ा हो।"

आदमी, “कहां मुंह घर पर रख आऊं।"

औरत, “अरे भइया अक्कड़ क्यों बोल रहा है।"

आदमी, “आप बात ही ऐसी कर रही है। अब बताओं मैं मुंह कहां पर करूँ। यहां पर सांस लेने की जगह नहीं है।"

औरत, “तो भइया रात की चड़ी हम पर उतारेगा क्या?”

आदमी, “तुम ही तो मिलों हो जो तुम पर उताऊंगा।"

औरत, “ज्यादा मत बोल।"

आदमी, "क्या कर लोगी आप?”

अंदर से बाकी, “अरे भइया छोड़ यार, क्यों गर्मी मे गरम हो रहे हो"

आदमी, “अरे तो यार देखों, किस तरह बात कर रही है ये।"

औरत, “किस तरह बात कर रही हूँ।"

बाहर कन्डेक्टर, “भीगे होंठ तेरे, प्यासा दिल मेरा। आओं - मूलचंद मूलचंद – चल उस्ताद।

यशोदा