Monday 18 May 2015

एक और बिस्तर

रोज की तरह आज भी दोपहर के करीब तीन या चार बज रहे होंगे। सभी गली में बातें करने में जुटे हुये थे। औरते अपनी मंडली में खोई हुई थी और बच्चे स्कूल की थकावट को दूर करने के लिए गली में दौड़ लगा रहे थे। पूरी गली में धूप बिखरी थी। कहीं – कहीं पर ही छाया थी, जिसका सहारा लेकर
औरतें अपनी कहानियाँ बुनने में लगी थी।

इतने में गली के कोने से एक अधेड़ उम्र की औरत भागते हुये दाखिल हुई। उस औरत की रंग-बिरंगी चुन्नी सिर से लेकर गले तक पड़ी हुई थी। वे गली के एक बड़े से चबूतरे पर तीन – चार औरतों के बीच जा बैठी और बोली, “क्या तुमने सुना है? पिछली गली से दो बच्चे गायब हो चुके हैं।“

उस औरत को कोई जानता तो नहीं था। लेकिन वो इस तरह से उनके बीच में बैठी थी की जैसे गली में वो सभी औरतों को जानती थी। बात ही कुछ ऐसी थी की उसके लिए किसी के साथ खास रिश्ता बनाने की कोइ जरूरत नहीं पड़ती।

वो फिर से बोली, “अरे वो ही समोसे वाले के पोते। अरे बड़े दुखी है वो। मैं वहीं से आ रही हूँ।“

सभी सुन रही थी। सभी को जैसे उस औरत की इस बात ने अपने में समा लिया था। उन्ही औरतों के बीच में बैठी एक औरत ने चौंकते हुये कहा, “वहीं जिनका कोने वाला मकान है?

“हाँ, हाँ वही।“ वो हाँ में हाँ मिलते हुये बोली।
उनके साथ वाली एक और औरत अपने पल्लू को आगे और खिसकाते हुये बोली, “उनपर क्या बीत रही होगी? उस माँ का क्या हाल हो रहा होगा?”

बातें दो औरतों के बीच में घूम रही थी मगर उसका असर सभी पर छाया हुआ था। की तभी साथ से अंजली हड़बड़ी में उठी और जोरों से चिल्लाने लगी, “नन्नो ओर नन्नो, कहाँ गई मेरी बच्ची?

अंजली को यहाँ पर सभी जानते है। कई बच्चो का अकेली सहारा अंजली, उनका घर बच्चो से भरा रहता है। उनका घर जैसे अंजान बच्चो के लिए किसी खेलने की जगह से कम नहीं है। ऐसा मैदान जहां पर कोई नहीं आकर खेल सकता है।

साथ वाले घर से निकलती चार या पाँच साल की लड़की ने कहा, “मम्मी में तो अंदर थी, टीवी देख रही थी। अंजली उस लड़की को अपनी गोद में बिठाती हुई बोली, “मेरी लाड़ो घर से बाहर मत निकलियों, कोई तुझे उठा कर ले गया तो मैं क्या करूंगी?” और वो बच्ची भोचक्की सी अपनी माँ को देखने लगी। अंजली ने उस लड़की को अपनी गोद में ही बैठा लिया। औरतों के बीच की बातें थोड़ी धीमी सी पड़ गई लेकिन बंद नहीं हुई थी।

दूसरी औरत उस चुप बैठी अंजली से बोली, “तू घबरा क्यों रही है? कुछ नहीं होगा हमारे बच्चो को, देखते है की कोई कैसे ले जाता है इन्हे।“

अंजली कुछ नहीं बोली, यहाँ पर सभी उसकी इस बेचैनी को जानती थी।
सब खामोश हो गई। कुछ ही देर के बाद में धीरे – धीरे सब कुछ सिमटने लगा। औरतें अपने अपने घरों की ओर लौटने लगी। और बीच में रह गई वो बात जिसने अपनी ही गली और उसमे आते नए लोगो को एक नए तरीके से देखने का नज़रिया दे दिया था।    

गली में एक ज़ोरदार आवाज़ हुई, सभी गली के लोग एक दम से बाहर की ओर आए। देखा की एक बच्चा बहुत जोरों से रो रहा है और यहाँ – वहाँ छुपने की कोशिश कर रहा है। सभी उसकी उस बेचैनी को देख रहे थे। कोई भी उस बच्चे की ओर नहीं जा रहा था। वो बच्चा लगातार रोये जा रहा था। इतने में वो एक घर के चबूतरे पर जाकर लेट गया। कुछ देर के लिए वो शांत हो गया। मगर अब आवाज़े दूसरी तरफ बिखर रही थी।

प्रेस वाले अंकल चिल्लाये, “अरे किसका बच्चा है ये?”
सब्जी वाले भैया, “पता नहीं लगता है किसी और ही गली का है?”
एक औरत ने कहा, “अरे देख तो लो कहीं बेहोश तो नहीं हो गया।“
दूसरी औरत ने बोला, “बेचारा ये तो गरम भी है।“
गली के दादा जी बोले, “देख क्या रही हो उठा तो इसे, यहाँ ले आओ मेरी खाट पर।“
सभी उसे उठा कर वहाँ पर ले गए।

“लगता है कहीं और है ये यहाँ का तो नहीं लगता।“
“ये कहीं छुट तो नहीं गया?, पिछली रात में यहाँ पर बारात आई थी।“
“लग तो यही रहा है।“
“थोड़ी देर रुक जाओ क्या पता कोई इसे ढूँढता हुआ आ जाए।“
“हाँ, हाँ, ऐसे ही करलो।“

वो बच्चा तो जैसे सो चुका था। सभी उसके जागने का इंतजार कर रहे थे और साथ ही उसके ढूँढने आने वाला का भी। लेकिन काफी देर हो चुकी थी। वो लड़का जब नहीं उठा तो उसके मुह पर पानी का छिड़काव किया गया। लेकिन वो नहीं उठा। सभी में एक हड़बड़ी सी उठने लगी। सभी के सभी उसे नजदीक के डाक्टर के पास में ले जाने के लिए भागे।

“चलो, चलो उठाओ, कहीं लड़के को कुछ हो ना जाए?”
“अरे पता तो करो की ये कहीं आसपास का ही तो नहीं है?”

गली के एक दो लड़को को यहाँ वहाँ भेजा गया। गली में सिर्फ औरते रह गई और आदमी उस लड़के को लेकर डॉक्टर के पास में ले गए। उन औरतों के बीच में घुमसुम बाते होने लगी।
कोई कहती, “बताओ किसी के बच्चे को कोई उठा कर ले जाता है और किसी का बच्चा खो जाता है।“
“सही कह रही हो जीजी। दर्द तो दोनों ही सूरतों में होता है।“
“पता नहीं किस का बच्चा है?”
“मैं तो कहती हूँ की पुलिस में दे दो।“
“अरे नहीं वहाँ पर ये और बेचारा पागल हो जायगा”

कुछ ही देर में आदमियों का जत्था उस बच्चे को लेकर लौटा। साथ वो दोनों लड़के भी जो इसका पता लगाने के लिए आसपास में गए हुये थे। किसी को भी इसका नहीं मालूम था। वो समोसे वाले अंकल भी आए थे की कहीं उनका ही तो पोता नहीं है। पर ये उनका भी नहीं था। बच्चा सो रहा था। रात हो चुकी थी। बच्चा दादा जी की खाट पर ही सोया हुआ था। बातें धीमी हो चुकी थी। फैसला हुआ की बच्चे को ढूँढने वाले जब तक यहाँ नहीं आएगे हम इसे कहीं भेजगे।
“पर इसे रखेगा कौन?”
दादा जी ने कहा, “और कौन रखेगा?” मैं रखूँगा, मेरे पास ही सो जायगा।“
सब्ज़ीवाले अंकल बोले, “अरे बच्चा खायगा, कपड़े सब कुछ चाहिए ही।“

कौन रखेगा, कौन रखेगा, का नारा और परेशानी सभी में देखी जा सकती थी। इतने में अंजली गली के अंदर आती हुई दिखाई दी। सभी की आँखों में जैसे खुशी छलक आई थी। जैसे ही अंजली उनके करीब आई तभी दादा जी ने कहा, “बेटा अपने घर में एक बिस्तर और कर दे। ये देख कौन है?”

अंजली उस बच्चे को देखती रही। छ: या सात साल का बच्चा, नंगा और सोया हुआ। वो कुछ नहीं बोली। जो भी करना था वो बाद में होता रहेगा। सबसे पहले वो उसे अपने घर में ले जाने के लिए खड़ी हुई। गली के बीच में खड़े लोगो से जैसे किसी बहुत ही बड़ी परेशानी खत्म हुई थी। दादा जी जाते हुये बोले, “जब तक इसके घर वाले इसे खोजते हुए नहीं आ जाते तब तक इसे रख ले।“


आज दो साल हो चुके है मगर उसे लेने कोई नहीं आया। कई शादियाँ हुई, हादसे हुये लेकिन अंजली के घर का शोर बढ़ता गया है कम नहीं हुआ।   


नंदनी