Sunday 7 June 2015

मेरी छत और आवाज़ें

पिछली दोपहर मै छत पर खड़ा होकर आसपास की आवाज़े सुन रहा था। मुझे उस समय बहुत अच्छी-अच्छी आवाज़े सुनाई दे रही थी जैसे- फट्र-फट्र की बहुत तेज आवाज़ थी। जिसे मैं समझ ही नहीं पा रहा था की वो किस चीज की है। एक और आवाज़ जो हवाई जहाज़ की थी। कुछ ऐसी झूं-झूं करके लगातार आ रही थी। इन आवाज़ों को सुनने में इसलिए भी मज़ा आ रहा था की ये मेरी समझ से बाहर थीमुझे आवाज़े सुनने में बहुत मजा आ रहा था। उस वक्त समय ग्यारह  बज रहे थे। कड़ी धूप थी, पत्ते लहरा रहे थे। दूर आसमान में उड़ती चील अपने दोस्तों के साथ खेल रही थी। पार्क में सारे बच्चे लट्टू खेल रहे थे, जिसकी आवाज़ झन-झन करती हुई मेरी छत तक आ रही थी। पार्क के कोने में बहुत सारे कबूतर फड़फड़ा रहे थे। सामने एक और पार्क था बिल्कुल सुनसान। लौहे के लगे झूले हवा से हिल रहे थे। मैं उन्ही को देखने मे इतना मगन था। की इतने में मेरे हाथ पर बार-बार एक चीटी मुझे छूकर गुजर रही थी। उसने मेरा ध्यान अपने मे लगा लिया। मैं उसको हाथ पर चलते हुए देखने लगा वह अपनी ही धून मे मेरे हाथ पर पर कि तरफ चड़े ही जा रही थी मानो उसने ठान रखा हुआ था कि आज वो हिमालय की चढाई पूरी कर लेगी। मैं उसी मे खोया हुआ था कि मेरी आंखे जलने लगी। मैंने आंखे उठा कर देखा सामने बहुत सारी लकड़ियों के ठेरे मे कुछ लडको ने आग लगा दी थी। अभी कुछ देर पहले तो यहाँ कुछ नही था। लकड़ियाँ सामने पड़ी थी ऐसे कि मानो जैसे कोई इनमें अभी आग लगाने वाला है। वहीं पर कुछ राजमिस्त्री भी बड़ी लगन से काम कर रहे थे। मिस्त्री पत्थर काटने की मशीन चला रहे थे। मशीन घड़-घड़ करती हुई चल रही थी जो बहुत शोर कर रही थी। अब समय साड़े बारह बज चुके थे जो कि मेरे स्कूल जाने का समय था इसलिए मैं चलने के लिए तैयार हो गया। मेरी छत से मेरा स्कूल दिखाई देता है। मैंने अपने स्कूल की ओर देख ही रहा था की कोई बहुत तेज आवाज़ आई। लगता था की कोई चिल्ला रहा है। मैं कुछ देर तक समझ ही नहीं पाया की ये है कौन? मैं अपनी गली में झाँकने लगा। पर मुझे कोई दिखा नहीं। मेरा दिमाग इसी तेज आवाज़ में खो गया और मेरे कान यहाँ वहाँ की आवाज़ों में खोने लगे। मैं पूरी तरह से पागल से हो गया। की किसे देखू और किसे सुनू। इसी पागलपन में मैं छत से उतर गया।


नीचे आया तो वही आवाज़ और तेज हो गई। देखा तो सामने वाले घर आ रही है। दवाज़ा बंद था मगर आवाज़ इतनी तेज थी की लोग उस घर की तरफ में मुह करके खड़े थे। समझ तो नहीं आ रहा था की क्या मजरा है लेकिन मालूम तो हो ही जायगा क्योकि गली अब पतली हो गई है। 


रवि