Thursday 3 November 2011

सुर्खियों में बटा लीलू


हाल ही में पेपरों के चलते हम सभी दोस्त एक साथ स्कूल जाते थे। पेन्ट की जेब में पैन रख और एक गत्ता पेन्ट की लुप्पी में टांग हम सभी दोस्त टशन से निकलते। क्लास में भी एक साथ बैठते। पूरी क्लास में मैं, अतुल, लीलू और विक्की सबसे शरारती हैं। जब चाहा किसी के पास बैठ उस पर कई तरह की छाप मारते और उन्हें किलसा देते। हमें अगर कहीं चॉक पड़ी मिलती तो हम सभी ब्लैक बॉर्ड, दिवारों पर अपना-अपना नाम लिख देते।


एक बार हम सभी दोस्त काफी देर से पहुंचे। अफरा-तफरी में कहीं और नज़रें घुमाए बिना पेपर की सीट पर निगाहें गड़ाये बैठे रहे। पैन चलता रहा और नज़रें किसी और की सीट पर टिकी रही। पी एन गुप्ता के आने का इंतज़ार अब खत्म हो रहा था वे हमारे समाजिक के सर हैं। अब किसी को फिक्र नही थी उनके आने की क्योंकि पास होने तक के नम्बरों तक का पेपर ज्यादातर सभी साथी कर चुके थे।

हम सभी यारो की टोली बन बैठे सभी को चिड़ाने का जरिया। आज तक की मशहूर फिल्म गदर जिसके डायलॉग मन को भावुक कर देते है मगर हम कहाँ ऐसे दर्शक हैं, जो किसी फिल्म को फिल्म की तरह देखें? उस फिल्म के डायलॉगों को अपनी हॅंसी-ठिठोली में शामिल कर सबको हंसने का मस्त मौका दे रहे थे। उस फिल्म के किरदारों को अपने बाकि दोस्तों को बना उन्हें हंसाने के लिए उन डायलॉगों को अपनी अदा से सबके सामने अभिनय कर रहे थे। क्या पता ये मस्ती हमें दोस्तो कि यादों में हमेशा के लिये कैद कर दे?

देर तक हम यूहीं मज़ाकिया दौर में हंसतें खिलखिलाते रहे उसी समय नज़रे दिवार पर जा भिड़ी और देखा कि बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था 'आई लव ज्योति' सभी ने उसे देखा और पढ़ा और आगे बढ़ गए। पर मेरा दोस्त लीलू तो जैसे चौंक ही गया। उसे ऐसा देख सभी उसकी मज़ाक उड़ाने लगे। वह कसमें खाने लगा। "माँ कसम मैनें नहीं लिखा" उसके चेहरे से पसीने छूट रहे थे। बस चन्द सैकेन्ड बचे थे वो रोने ही वाला था। कहीं सर न देख लें। यही सोच मैं उठा और कागज़ से उस नाम को पोंछने लगा। हम सभी ने उसे विश्वास दिलाया कि कोई भी सर को नहीं बताएगा। वो थोड़ा शांत तो हुआ मगर उसे हमारे ऊपर भरोसा नही था। हम अपना एक पीरियड छोड़ उसे लेकर बाहर आए और स्कूल के बाहर बनी दिवार पर बैठ कर उस बात को छोड़ उससे पेपरो के बारे में बात करने लगे। कल कौन सा पेपर है? कल तो जल्दी ही आना है इन्हीं बातों के चलते अतुल ने लीलू के कंधे पर हाथ रख कर कहा, 

"भाई कब मिलवाएगा? कहाँ रहती है?”

ये बात सुनकर तो लीलू का गुस्सा मानो इतना भड़क चुका था कि अतुल की तो हवाईया गुल हो गईं। इसी बहस बाजी के दौरान अतुल और लीलू की लड़ाई हो गई। हम सभी इस लड़ाई को हंसी-मज़ाक में ले रहे थे। अगले दिन जब लीलू स्कूल पहुंचा तो क्लास में घुसते ही चौंक गया। चारों तरफ उसकी नज़रें घूम रही थीं।

दिवारों, दरवाज़ों, ब्लैक बॉर्ड पर 'आई लव ज्योति' लिखा था। ये देख तो लीलू की आँखों में खून उतर आया। वह हर जगह अतुल को तलाशने लगा। सभी उस नाम की परछांई को प्यार का नाम देने लगे।

आज सभी टीचरों के डांटने फटकारने का विषय लीलू था। बाकी साथियों के बतियाने का विषय भी यही था। कोई समझ नही पा रहा था कि ये हो क्या रहा है? आज स्कूल कि चर्चा लीलू के साथ शुरू हुई और खत्म भी शायद इसी पर होने वाली थी। हल्ला स्कूल की दिवारों से गुंजता हुआ बाहर की दुनिया तक जा रहा था। 'आई लव ज्योति-आई लव ज्योति'
जिस नाम को सुनने का दुख लीलू को था उस रूह को देखने कि चाहत सभी को थी। आखिर ये ज्योति कौन है?

इन्हीं सवालों का जवाब पाने के लिए लीलू को ढूढा गया। क्लासों में, स्कूल की छतो पर, यहाँ तक की बाथरूम में भी, मगर लीलू नहीं मिला। सबकी तलाश पाँचवे पीरिडय तक आते-आते खत्म होने लगी थी उसके बाद सभी ने अपना रूख अपनी-अपनी क्लासों की तरफ कर लिया। टीचरों के होते हुए भी सभी लीलू को याद कर उसका मज़ाक उड़ा रहे थे। सभी का समय उसी की चर्चा करते हुए हंसी-ठिठोली मे बित रहा था।

लीलू की खबर किसी को नहीं थी। उसका बैग भी क्लास मे उसकी सीट पर पड़ा हुआ था। मैनें बैग उठाकर अपने कन्धे पर टांगा और चल दिया लीलू के घर की तरफ।

अगले दिन जब मैं स्कूल पहुंचा तो देखा गोल दायरा बनाए खड़ी लड़को की भीड़, मेरे कदम तो ठहर नही पाए मैं फटाक से उस भीड़ में शामील हुआ।

ये देखते ही चौक गया की अतुल और लीलू की धूआंधार लड़ाई हो रही थी। सभी उस लड़ाई का लुफ्त उठा रहे थे। चारों तरफ उड़ती मिटटी बस यही गुहार लगा रहीं थी-

"कौन है वो?"
"कहाँ रहती है?"
"हमें नही मिलवाएगा क्या?”

अनिकेत

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