Tuesday 29 January 2019

ग्यारह बजे का मोहल्ला



करीब रात के दस या ग्यारह का समय हो रहा है। मैं और मेरी बडी दीदी सब्जियाँ लेने के लिए घर से निकले तो देखा कि गली मे दरवाजे तो लगभग बन्द हो चुके थे। पर गली की ही रेनू दीदी, अंजू भाभी व प्रकाश बुआ गली के नुक्कड़ पर खडी हमारा ही इन्तिजार कर रही थी। हमे देखते ही वो पीछे से बोली कुछ बोली। उनके बोलते ही कुत्तों के एक झुड ने भौंकना शुरू कर दिया। मीना मामी ने डन्डे को  जमीन पर ज़ोरों से मारा। और तोतोकहा। उन्होने कई बार ये बोलती रही। उनकी आवाज सुन कर कुत्ते पीछे हट गए और भौंकना बन्द कर दुम हिल्ला कर अपनी ही जगह खडे रहे।

मीना मामी ने हमें देखते हुए कहा, “देखा कैसे है? अपनो को भी नही पहचानते।“

वो डन्डा हिलाती हुई आगे चल दी। रास्ते मे गेट पर चैकिदार कुर्सी पर बैठा बिडी फूँक रहा था। उसके सामने आलाव जल रहा था। साथ ही कुछ तेरह या चोदह साल के लडको का समुह आग ताप रहा था। वो सभी हाथो मे गन्दे कपडे की बोल सी पकडे हुए थे जिसे वो बार -बार अपने मुंह पर रख कर लम्बी सांस खेचे जा रहे थे। उससे आगे बढे तो देखा कि सडक कि दोनो किनारो पर माल ढोने के टेम्पू खडे थे। कुछ समान लाद कर निकल रहे थे और कुछ दुकानदार अपना समान लाद रहे थे। सडक पर खाली डिब्बे, पन्नी बिखरे पडे थे। सामने से एक अधेड उर्म की औरत और उसके साथ तेहरह चौदह साल का लडका कन्घे पर सफेद कलर का बडा सा बोरा उठाए सडक के दोनो तरफ से कागज पन्नियाँ उठा कर बोरे मे उभरते हुए आगे बढे आ रहा था। दुसरी तरफ से गाय कुडा खाती हुई सडक पर घूम रही थी। बाजार की सभी दुकाने बद हो चुकी थी। पीछे मुड कर देखा तो गलियाँ भी नींद की आगोश मे समाने लगी थी। छोटी – छोटी बेटरी लाईट की रोशनी मे दूर तक नजरे दोडाई तो देखा कि लोगो कि जगह अब गली मे गाडियो की लाईन लगी थी। देख कर ऐसा लग रहा था कि गाडियाँ भी दिन भर कि थकान मिटा रही है। एक-दुसरे को दिन भर कि कहानी सुना रही है।

कोने के घर के सामने खडी मोटर साईकिल तो फूलो वाली चादर से ढकी खडी है। उसके उपर एक सीट पर एक कुत्ता गुडली मुडली मारे मॅुह को पैरो के बीच रखे आराम फरमा रहा है। जब गर्दन घुमाई तो सब्जी मार्किट मे तो रात के बारह बजे भी दिन निकल रहा है। बडे -बडे थैले लिए औरते और आदमी दुकानो पर ऐसे टूट रहे हैं कि जैसे सब कुछ फ्री मे मिल रहा हो। समय का किसी को कोई अहसास नही हैं। हमने भी अपनी पसन्द की सब्जियाँ खरीदी और मीना मामी ने सभी को आवाज लगाई कि चलो रात के बाहर बज गए है।

अंजू भाभी ने अपना सब्जियो से भरा थैला कन्धे पर लाद कर कहा, “समय का तो पता नही चला।“

सभी ने अपने थैले कमर व हाथो मे लेकर जैसे ही वापसी कि तो कुछ आगे बढ तो देखा की कालोनी के गेट बन्द हो गया था और चौकिदार भी वहाँ से नादारत था। छोटे गेट के सामने जाकर देखा तो वो भी ताला लटकाए खडा था। सभी के चेहरो पर चिन्ता कि लकीरें आ गई। प्रकाश बुआ ने कहा, “मन्दिर के पास वाली गली मे से निकलते है।“ ये कहकर सभी जैसे ही पीछे हटे थे कि गाडियो के नीचे से कुत्तों की एक फौज निकल कर सामने दिवार की तरह खडे होकर एक स्वर मे भौं करने लगे। आसपास के घरो के दरवाजे ऐसे लग रहे थे कि कस कर बन्द हो रहे थे। कोई भी दरवाजा उन कुत्तों की आवाज पर नही खुला। कुत्तों को डांटते फटकारते हुए। जब मन्दिर वाली गली के सामने पहुच गए तो देखा कि गली मे गुप अंधेरा हो रहा था। अंजू भाभी तो डर कर पीछे होते हुए रेनू मासी से बोली, “मासी मैं कह रही  थी कि जल्दी चलो। पर मंडी मे तो पता ही नही लगा इतना टाइम हो गया।

प्रकाश बुआ ने सीने पर रखे मोबाईल को हाथ देकर निकाला और उसका बटन दबाकर  हल्की रोशनेी कर बोली, “सब धीरे - धीरे निकलो।“

गली इतनी सकरी थी। हम एक -एक कर आगे बढ रहे थे। जैसे ही गली के अन्तिम छोर पहुचे कुडेदान की बदबू से नाक के बाल भी जल गए। पुरे कुडेदान मे पाँच या छेः गाय  कुडा खा जा रहेी थी। कुछ जमीन पर बैठी ऊँग रही थी। उन्ही से कुछ दुर कुडेदान के पास बने कमरे के दरवाजे के पास आग  जला कर उससे थोडी दुर पर पन्नी बिछाकर जमीन पर कुछ लोग सोए हुए थे। उनमे से एक के खराटे साफ सुनाई दे रहे थे। कुडेदान के पास वाली सडक पर काफी दूर तक कुडे से  भरी थेलियाँ कुत्तों के पिल्ले इघर -उधर खीच रहे थे। अभी हम कुछ दूर ही निकले थे कि काले रंग कि बिल्ली अपने बच्चो के साथ एक बोरी के अन्दर खेल रही थी। उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि इस वक्त उन्हे किसी का डर नही है।

मैं उसे देखने के लिए एक पल वही खडी हो गई तो रेनू मासी ने कहा, “यही जमने का इरादा है। क्या इन्हे तो सुबह भी देख लेगी घर चल।“

मैं भी उनकी एक आवाज पर उनके पीछे हो ली। जैसे ही हम गली के नुक्कड पर पहुचे फिर से कुत्तों ने भौंकना शुरू कर दिया। सामने से बिल्ली रास्ता काट गई। बिल्ली के रास्ता काटते ही मंजू भाभी कुछ पल के लिए वही खडी हो गई। तभी प्रकाश बुआ ने कहा, “अब रात के बारह बज रहे है। कोई नही आएगा। सारी रात रही खडी रहो जब कोई रास्ता काट जाए तब घर आ जाना।“

उनकी बात सुनकर सभी कुत्ते थे कि भौं – भौं किए ही जा रहे थे। सभी अपने -अपने घरो के दरवाजो को नोंक कर दरवाजा खुलने का इन्तिजार कर रहे थे जैसे ही दरवाजे खुले सभी एक दूसरे को गुड नाईट कर अन्दर चले गए ।


 नंदनी

  



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