Thursday, 22 January 2015

दादी को ख़त

नमस्ते दादी जी। आप कैसी हो? 

मुझे आपकी बहुत याद आ रही है। आप जल्दी से लौट आओ मुझे आपके हाथ से बनी रोटी और सब्जी की याद आ रही है। आपके हाथ के बने पकोड़े, टिक्की, दही-भल्ले, कचोड़ी और दाल चावल। जब से आप गईं हैं मैं ठीक से खाना भी नहीं खा पाई हूँ। कुछ भी खाने का मन नहीं होता। आप तो जानती ही हैं की घर में सभी अपने अपने काम में लगे रहते हैं। पापा काम में, मम्मी घर में और मैं अकेली रह जाती हूँ। मेरे साथ में कोई बात नहीं करता। मैं जब स्कूल से आती हूँ तो अकेली घर में बैठी रहती हूँ। रात में नींद नहीं आती, खेल भी नहीं पा रही हूँ। बहुत अकेलापन लग रहा है। स्कूल में मेरी एक नई दोस्त बनी है। वो बहुत अच्छी है। पर पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता है। कल उसका जन्मदिन है, मैं जाना चाहती हूँ पर आपको तो पता है पापा जाने नहीं देगे। आप होते तो मैं आपको ले जाती। आपने बिना तो मैं बाहर भी नहीं जा पा रही हूँ। 
 
आप अपनी दवाइयाँ यहाँ ही भूल गई हैं। वो आपके लिए बहुत जरूरी हैं। गाँव से किसी को भेज दीजिये या खुद ही आ जाइए।

पिछली बार तो आप मुझे भी अपने साथ में ले गई थी। मगर इस बार नहीं ले गई। हाँ, मैं जानती हूँ मेरी पढ़ाई के कारण ही ऐसा हुआ है लेकिन अगली बार मैं ज़रूर आपके साथ में चलूँगी। अच्छा तो सुनिए, जब आप गाँव से आए तो मेरे लिए वहाँ की हिन्दी की किताब लेकर ज़रूर आना। जो वहाँ के बच्चे पढ़ते रहते हैं, मैं उस किताब को पढ़ना चाहती हूँ। साथ ही वहाँ के देसी घी के लड्डू, जलेबी भी ज़रूर लेकर आना। पिछली बार जब आप मुझे गाँव लेकर गई थी तो मैंने बहुत खाये थे। भूलना मत। और हाँ, मेरी एक फ्रॉक वहाँ पर छुट गई थी, वो भी लेते आना। भूलना मत दादी।
आप बस जल्दी से आ जाओ, मेरा मन नहीं लग रहा आपके बिना।

आँचल

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