Wednesday 11 February 2015

सपना


काश की मैं खुले आसमान में उड़ पाती पर सोचती कि ऐसा नहीं हो सकता। तभी ख्यालों से होते हुए मेरा मन एक पक्षी से मेरी तूलना करने लग जाता और भरी कल्पनाओं में डूब जाता। मैं अपने बारे में सोचती रहती कि मैं क्यों नहीं उड़ सकती।

और मैं फिर से उसी सपने में खो जाती      

चेतना

No comments:

Post a Comment