Sunday, 15 February 2015

मैं पेड़ के गले लग गई

चारू ने अपनी दोस्त से कहा, चल मेरे साथ दुकान पर चल!’

वो उसका हाथ छिटकते हुए बोली, ‘नहीं, पहले तू मेरे साथ चल! फिर मैं तेरे साथ चलूँगी!

‘ठीक है, पर ज़्यादा दूर नहीं!’

वे दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़कर चलती रही तभी अचानक चारू की दोस्त अंजली ग़ायब हो गई। चारू अंजली को ढूंढ़ती रही लेकिन वो कहीं नहीं मिली। चारू को लगा कि अंजली उसे धोखा देकर भाग गई है। वो पेड़ पर अपना सिर मारते हुए बोली, ‘अंजली मुझे धोखा देकर भाग गई। मैं उससे कभी बात नहीं करूंगी!’

चारू के पेड़ पर सिर मारने से उसे गुस्सा आया और वो बोला, ‘कौन है मेरी नींद खराब कर रहा है! मैं उसे नहीं छोड़ूंगा!’ ये सुनकर चारू पीछे हटी और चैंकती हुई बोली, ‘कौन है जो मुझसे बात कर रहा है! लगता है ये अंजली है? अभी इसे मजा चखाती हूँ!’ तभी पेड़ ने कहा, ‘अरे बच्ची तुम किसे ढूंढ़ रही हो? तुमने मुझे मार-मार के सूजा दिया है!’ ये सुनकर चारू चैंकते हुए बोली, ‘बोलने वाला पेड़! ’

पेड़ ने रोते-रोते कहा, ‘हाँ मैं बोलने वाला पेड़ हूँ! मुझसे सभी लोग डरते है, पर मैं किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता हूँ!’

चारू ने कहा, ‘यहाँ तो कई पेड़ है और कोई भी नहीं बोल रहा है सिर्फ़ तुम ही बोल रहे हो!’

पेड़ ने कहा, ‘कई साल पहले की बात है मैं इस जंगल में भटक गया था। रास्ता ढूंढ़ रहा था कि तभी अचानक मुझे एक गुफा दिखी। उस समय मैं इंसान हुआ करता था। एक बूढ़ी अम्मा तेजाब पी रही थी। मैंने जल्दी से उस बोतल को उनके मुँह से हटाया और कहा, ‘अम्मां ये तेजाब है इसे कभी मत पीना, नही ंतो तुम्हारा मुँह जल जायेगा।’ बूढ़ी अम्मा को क्रोध आ गया और बोली, बेवकूफ ये मेरी दवाई थी। इसे पीकर मैं इंसान बन जाती और गाँव जाकर इंसानों को अपना दोस्त बना लेती। बाद में उन्हें खा भी जाती। अब मैं तेरा खून पीयूंगी। तू एक पेड़ बनेगा! उस बूढ़ी अम्मा ने गुस्से में आकर मुझे काला पत्ती वाला पेड़ बना दिया!’

चारू को उस पेड़ की बात सुनकर उस पर रोना आ गया और वो गुस्से से बोली, ‘अभी उस बूढ़ी अम्मा को ठिकाने लगाती हूँ!’

‘पेड़ राजा मुझे उस गुफ़ा में लेकर चलो!’ चारू ने कहा

पेड़ बोला, ‘मैं इस जगह से हिल नहीं सकता पर अपने दोस्त को बुलाता हूँ!’

पेड़ राजा ने अपने दोस्ता को सीटी मारी। सीटी की आवाज़ सुनकर एक बड़ा सा बाज़ आया और बोला, ‘पेड़ राजा बोलो, क्या बात है?’

पेड़ ने कहा ‘मेरी दोस्त को उस बूढ़ी अम्मा की गुफा में ले जाओ!’

वो मुझे अपनी पीठ पर बिठा कर उस गुफ़ा में ले गया। मैंने अम्मा की एक झलक ही देखी थी!

तभी मम्मी ने कहा, ‘कौन सी अम्मा? चल उठ और ब्रश कर ले!’

मैंने फटाफट ब्रश किया और खाना खाकर मैं पार्क में घूमने चली गई। वहाँ मैंने उसी पेड़ को देखा। मैं बिना सोचे-समझे उस पेड़ के गले लग गई।

... चेतना

No comments:

Post a Comment