Friday 13 March 2015

मौहल्ले में चुनावी रंग

ठंड से कंपकपाते दांत, मुंह से निकलता धुआं, गली के नुक्कड़ पर सड़क के किनारे जलती आग का उठता धुंआ, आसमान में उड़ते कोहरे को और घना कर रहा था जिसको देख शरीर में सिहरन सी दौड रही थी। मन तो आग की गर्म-गर्म लपटों के सामने जाकर बैठने को कर रहा था। वहीं गली के नुक्कड़ पर प्रेस वाले काका दोपहर से ही आग जलाने का इंतज़ाम कर रहे थे। जहां भी कागज़ या पन्नी दिखाई पड़ती उसे उठाकर अपनी दुकान में रख लेते। यह तो उनका रोज़ का काम बन चुका था। अगर उनके घरवालों ने उसे कूड़ा समझ कर फेंक दिया तो उनकी पूरे दिन की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।

आज फिर रात की तैयारी के लिए वे दुकान के अंदर अलमारी में रखे कागज़ व पन्नियों का ढेर हाथ में लिए बाहर आए और अलमारी के नीचे रखे कडि़यों के गट्ठर की संभाल कर उठाते हुए, उसे बाहर की तरफ़

घसीटते हुए ले आए और एक ठंडी आह भरते हुए कुछ देर वहीं खड़े उस लकड़ी के गठ्ठर को देखने लगे।

उन्होंने छत की तरफ़ देखते हुए जोर से चिल्लाकर कहा,

”लल्ला ज़रा माचिस तो फेंकना, हाथ गर्म कर लूं।”

लकडि़यों को दुकान के कोने में करीने से रखकर उनके नीचे पन्नी व कागज़ों को लगाकर आग जला दी और कुर्सी पर बैठते हुए बोले, ”अरे दीपक आजा, तू भी हाथ गर्म कर ले।”

काका ने सामने की दुकानवाले से कहा। उनकी बात उनके बगल वाले ने कहा, ”काका मुझे नहीं बुलाओगे?”

”अरे संजय अपनों को न्यौता देने की जरूरत नहीं होती! आ तू भी बैठ!”

वह मुस्कुराते हुए अपनी दुकान का शटर बंद कर उस तरफ़ चल दिए और हंसते हुए काका से कहने लगे, ‘लो भई काका हम भी आ गए सुनते हुए काका ने कहा, ‘हां-हां बैठो दीपक की दुकान से बेंच मंगवा लो वह कुछ देर खड़ा होकर सोचने लगा और फिर दीपक की दुकान से बेंच मंगवा लो।’ वह कुछ देर खड़ा होकर सोचने लगा और फिर दीपक को आवाज़ लगाते हुए वाले ‘दीपक बेंच लो आ काका की आग भी जल गई।’

काका हंसते हुए बोले, ‘देख लो, भई लकड़ी, कोयले मंहगे होने के बावजूद भी मैं तुम्हारे लिए पूरा इंतज़ाम रखता हूं।’

सुनते ही केमिस्ट वाले ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘अरे काका, आपके रहते हुए कैसी टेंशन। महंगी तो हर चीज़ है!’

‘पेट्रोल के दाम घट गए है।’ दीपक बोला,

काका खिसियाते हुए बोले, ‘कितने दिन?’

‘कितने भी दिन हो पर घटे तो हैं!’ दीपक ने कहा

दोनों की बात काटते हुए फिर से केमिस्ट वाले ने कहा, ‘जब तक चुनाव नहीं होंगे तब तक तो दाम घटते ही रहेंगे। एक बार चुनाव तो हो जाने दो फिर तो सभी के दाम सातवें आसमान पर पहुंच जाएंगे।’

काका ने आग तापते हुए माहौल में एक गर्म चिंगारी छोड़ दी।

‘इस बार दिल्ली में किसकी सरकार बनेगी?’

सड़क पर चलती रफ़्तार से गुजरती बाइक की ढर्र-ढर्र की आवाज़ में काका का सवाल खो गया। यह देख दीपक ने फिर काका का उकसाते हुए कहा, ‘काका क्या कह रहे थे!’

काका ने मूंछों को ताव देते हुए कहा, ‘मैंने पूछा किसकी सरकार बनेगी?’

आग धीरे-धीरे कम हो रही थी पर चुनावी बातचीत की आग बढ़ती जा रही थी। बगल वाले सभी टेलर मास्टर भी अपने-अपने काम को समेट बातचीत का हिस्सा बनने लगे।

टेलर मास्टर ने कहा, ‘सरकार तो भाजपा की ही आएगी।’

काका सरकार तो भाजपा की ही आएगी।

सलीम टेलर मास्टर जी की बात को काटते हुए बोला, ‘इस बार फिर से आम आदमी की सरकार बनेगी। अब भी बस उसकी बारी है मुझे तो लगता है कि आम आदमी पार्टी ही जीतेगी!’

सुनते ही भौंहे उचकाते हुए काका भी सलीम का हाथ पकड़ उसके समर्थन में खड़े हो गए, ‘ठीक कहता है बेटा!’

धीरे-धीरे चुनावी मजमा बढ़ने लगा। सड़क पर चलते हुए लोग भी इस बहस के हिस्सेदार बनने लगे। माहौल इतना गर्मा गया था कि केमिस्ट वाले ने काका के घुटनों पर हाथ रखते हुए कहा ‘काका पिछले दिन याद करो। हमें यहां किसने बसाया है? आज सब कांगे्रस को भूल बैठे हैं।’

‘नया नौ दिन पुराना 100 दिन।’ ये कहते हुए उन्होंने सभी के चेहरों की ओर देखा एक पार्टी है जो ग़रीबों के पक्ष में है।

‘अरे भाई क्या बात लेकर बैठ गए, कांग्रेस तो गई अब तो आम आदमी की बारी है। देखा नहीं मुख्यमंत्री होते हुए भी इंडिया गेट पर धरना देकर बैठ गया था। अब तक कोई मंत्री देखा है। उसके मन में सीट को लेकर तो कोई लालच नहीं था’

तभी नशे में झूमता हुआ एक शख्स हवा में हाथों को लहराते हुए वह काका की कुर्सी के पास टिक गया। काका आज तो महफिल पूरे जोश में है। अबे हमें क्या लेना-देना पार्टी में अपने को तो खाना और कमाना है। सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। काका भी यह सुनते ही सलीम की बातों का जवाब देते हुए काका, कुर्सी से खड़े होते हुए जोश में बोले, ‘छोरे की बात में दम है, बस मौक़ा मिल जाए फिर तो सब कुछ बदल देगा।’ ये सुन सभी ने काका की बात का समर्थन करते हुए तालियां पीटनी शुरू कर दी। वही शराबी फिर से जोश में आते हुए काका से कहने लगा, ‘काका आप जिसे कहेंगे मैं उसे वोट दूंगा पर क्या फ्री में पिलाओगे? वह तो ख़ुद ही ग़रीब आदमी है, भीख मांग कर तो चुनाव लड़ रहा है। तुझे क्या खाक़ पिलाएगा। मौक़े पर चैंका मारते हुए केमिस्ट वाले ने कहा। काका भी बातचीत में ठहाका लगाते हुए बोले, ‘दारू तू पी लेना, वोट आम आदमी पार्टी को दे देना।’ ये सुन माहौल में हंसी की लहर दौड़ गई। आग कब की बुझ कर राख बन चुकी थी। किसी को पता ही नहीं था पर माहौल में चुनावी गर्मी का सभी की सांसें एहसास करवा रही थी। समय लगभग 12 बज चुके थे पर बातों का मजमा था कि टस से मस होने का नाम ही नहीं ले रहा था तभी काकी की आती आवाज़ ने सभी को समय का एहसास करवा दिया अब कब तक बैठे रहेंगे, अंदर आ जाओ। काका के कुर्सी उठाते ही पूरा हुजूम धीरे-धीरे सिमट गया।

... नन्दिनी

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