Friday 13 March 2015

अकेली लड़की

सभी की नज़र उसके गोल-मटोल से चेहरे को निहार रही थी। लोगों की नज़रे पल-पल उसे निहारती क्योंकि वह बस में अकेली थी और अपनी ही कश्मकश में डूबी थी। खिड़की से बाहर के नज़ारों को भाप रही थी और सोच रही थी कि कब अपने घर पहुंचूंगी और कब उनकी शक्ल देखूंगी। देखते ही देखते बस ख़ाली होने लगी। मगर बस में बैठे-बैठे उसकी आंख लग गई। बस चल दी मगर वो नहीं उठी। तभी उसकी आंख खुली और वो बोली, ‘मैं कहां हूं?’

ड्राइवर के पास जाकर उसने पूछा, ‘भइया, मैं कौन सी जगह पर हूं?’

उसकी आवाज़ सुनकर बस वाला भी डर गया कि पूरी बस तो ख़ाली हो गई, ये यहां क्या कर रही है? उसने आगे देखा नहीं और बस एक पेड़ से टकरा गई। वो लड़की बस की सीढि़यों पर जाकर गिरी। बस का दरवाज़ा खुल गया।वो चिल्लाई, ‘बचाओ, बचाओ!’ मगर ड्राइवर बेहोश था। उसने अपने आपको बचाने की कोशिश की मगर वो बच नहीं पाई। उसकी सांसे अभी चल रही थी। पुलिस वालों ने उसे बच्चों के अस्पताल पहुंचाया। वहां बच्चों की अच्छे से देखभाल की जाती है। उस अस्पताल को जंगल की तरह सजाया हुआ था। वहां नकली तितली भी बहुत सी थी। उसका वहां मन लगने लगा। वरना वो बार-बार यही बोल रही थी कि मुझे घर जाना है। जब पुलिसवालों ने पूछा तो वो बोली, ‘मुझे कुछ याद नहीं!’

पुलिस वाले चले गए फिर वो पलंग पर चढ़कर नाचने लगी। बाद में उसे याद आया कि मुझे तो नानी से मिलने जाना है। उसने वहां से भागने की कोशिश की।

जो भी आता वो उसे वापस कमरे में बंद करके चला जाता। वो पलंग पर सिकुड़कर बैठ गई और सोचने लगी कि कोई तो रास्ता हो जहां से मैं निकल सकूं पर चारों ओर सख़्त पहरा है।

वो भागने की कोशिश कर ही रही थी कि डाॅक्टर आए और उसे एक सुई लगाकर चले गए। धीरे-धीरे उसे नींद आ गई।

... ... अमीशा

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