Tuesday 21 July 2015

मैं अकेली कहाँ

“मिसिज कांता आपकी चाय” गर्म भाप से पसीजा हुआ गिलास ठक से मेज पर रखते हुए एक आवाज सुनाई पड़ी और उसके बाद मिसिज कांता, अपनी चाय और केवल उनके लिए चलता हुआ पंखा तीनो कमरे मे फिर से अकेले रह गए।

टेबल पर रखी कॉपियों की मीनार शशि कांता मैडम की गर्दन से भी उॅची थी। साइड मे यूटी के तीन-चार बंडल भी रखे थे जो बार-बार उनकी तरफ ऐसे लुढ़क आते थे कि लग रहा था कह रहे हो मैडम जल्दी करो, इन कॉपियों के बाद हमारी बारी है, ‘‘उन्हे पेन को थामकर अपनी कलाई चटकाने तक की फुर्सत नही थी, ऐसे मे शायद बेखबर थी कि बेचारा चाय का गिलास कब से उनकी राह देख रहा है, मानो स्टाफ रूम की हर चीज की तरह वह भी सब्र कर रहा था कि शायद यह खामोशी कुछ देर बाद टूट जाएगी। उस टेबल के चारो ओर लगी कुर्सिया कुछ एक-दूसरे की तरफ मुड़ी कुछ टेढ़ी कुछ अपनी बगल वाली के बिल्कुल करीब तो कुछ टेबल के नीचे घुसी हुई, उस मंजर की याद दिला रही थी जो शायद कुछ देर पहले यहाँ रहा होगा, सामने रखे वो खाली गिलास जिनके तलो मे कुछ चाय अब भी बाकी थी, बता रहे थे कि काम और गपशप के माहौल मे उनकी भी खास भागीदारी रही है लेकिन अब ,अब हर चीज मे एक ठहराव था।

वो अधखुला दरवाज़ा, वो टेबल के नीचे रखी मैंडम की स्लीपर, उनके नीले थैले से झाँकती पानी की बोतल और उनके से लटकता वो चाबी का गुच्छा सब कुछ उनकी तरह, उनके साथ ढला हुआ। जब वो अकेली होती हैं तो उसकी दुनिया एक ऐसा ही रुप ले लेती है जहां ना कोई गुंजाईश होती है, न कोई इंतजार, ना किसी का खालीपन और न ही कोई भराव। वो दिन भी कुछ ऐसा ही था कभी पेन को ज़रा थामकर बाँय हाथ की उंगली से माथे की सिलवटें गिनने लगती, तो कभी एक धीमी मुस्कुराहट के साथ अपने आप से कहते, ‘‘बढिया है इस लड़की ने अच्छा किया है‘‘ मानो उनके हाथ मे थमा पेन, पेन पा होकर इंसाफ का तराजू हो, जहां न्याय के रुप मे कभी किसी को वह शाबाश लिख भेजती तो कभी सीधा गंदा काम लिखकर कॉपी ठक से बंद कर देती, क्योंकि छुपाना तो उन्हें आता नहीं और वो हमेशा कहती हैं जब तक अपनी कमी को अपनाओगे नहीं, तो सुधार की गुंजाइश कहाँ से लाओगे। ये सिलसिला बड़ा लम्बा चलता हैं, कॉपियाँ कम होती जाती हैं पर उनकी चेक करने की गहराई में कोई बदलाव नहीं आता, अगर कुछ बदलता है तो उनके बैठने का अंदाज। कभी पाँव पर पाँव चढ़ा टेबल की तरफ झुक जाती, तो कभी दोनो पैर ऊपर कर सहारा लेकर बैठ जाती।

यूं तो हर कोई उन्हें काम के सिलसिले मे ही पुकारता हैं, पर हर पुकार पर उनका चेहरा खिल उठता हैं और वो पलटकर बड़ी तहज़ीब से पूछती हैं, ‘‘हांजी, कहिए क्या काम है?‘‘   

टीना



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