Monday, 15 July 2013

मैं और मेरे घर की घड़ियां

वैसे तो मेरा नाम सिमरन है और 13 साल की हूँ पर ज़ेहन में पनपते वो ख्याल जिन्हें चाहते हुए भी मैं कभी छुटकारा नहीं पा सकती अक्सर मैं खुद से ही इतनी बहस में लगी रहती हूं कि कई बार मुझे दादी भी डांट देती है कि तू किस दुनिया में खोई है पर पता नहीं कब मैं इस आदत से छुटकारा पाऊंगी। घर में दादी हो या छोटा भाई (पवन) या पापा जिनके साथ मेरा बहुत करीबी रिश्ता है।

पवन, जो चौथी क्लास में पढ़ता है। कहने को तो मुझसे छोटा है पर लड़ने में मुझसे भी तेज़ है। कई बार मैं कुछ खेलने के लिए सामान उठाती हूं तो वो उसी वक्त उस सामान को लेने के लिए उठेगा। अगर मैं नहीं दूंगी तो मुझे दादी से डांट खिलवाएगा। गुस्से में कई बार मैं उसे चांटा भी मार देती हूं। जब लड़ने के बाद हम दोनों अलग हो जाते है तो मुझे अफसोस भी होता है कि मैंने क्यों उसे मारा आखिर मेरा एक ही तो छोटा भाई है जिसे मैं अपनी हर बात बताती हूं। अपने स्कूल के किस्सों को लेकर कोई भी बात हो हम मजे से बैठकर करते है लेकिन हम दोनों का लड़ने का केवल एक बहाना है क्योंकि लड़ने के तुरंत बाद वो फिर से कुछ न कुछ शैतानी करने लगता है और मैं तेजी से उसकी उन हरकतों पर हंसने लगती हूं।

उसका सपना है कि वो बड़ा होकर खूब पैसे कमाएं। खेलने में वो बहुत ही तेज़ है। कई बार अगर हम दोनों गली में रेस लगाते है तो वो मुझे भी हरा देता है। हम दोनों रात को दादी के साथ सोने के लिए खूब झगड़ा भी करते है फिर भी वही दादी के पास सोता है। कभी-कभार अगर वो भूल जाता है तो मैं जल्दी से जाकर दादी के पास सो जाती हूँ।

दादी जो हम दोनों को रात में सोते वक्त कहानी सुनाती है मुझे उनकी एक कहानी बहुत अच्छी लगती है। अक्सर जब भी मैं नाराज़ हो जाती हूँ या कई बार गुस्से से खाना खाने से मना कर देती हूँ तो मुझे दादी प्यार से सहलाते हुए हाथ में एक रुपया थमाते हए कहती है, ‘सुन... एक था राजा, एक थी रानी। एक बार राजा शिकार के लिए जा रहा था रानी उससे पूछती है, तुम कहां जा रहे हो? राजा बोलता है अभी आ रहा हूं। रानी पूछती रह जाती है और राजा चला जाता है। इस बीच दादी एक सवाल पूछती है, ‘कहां गया राजा?’ मैं अपने आंसूओं को पोंछते हुए कहती हूं, दादी जंगल गया शिकार करने! सुनकर झुर्रियों से भरे उनके चेहरे पर धीमी सी मुस्कुराहट जो मेरे उन आंसूओं की धारा को रोकती आ जाती है। दादी जो एक मम्मी की तरह हमें प्यार करती है दादी के हाथ के बने कड़ी-चावल और गाजर का हलवा मैं बड़े शौक से खाती हूँ। कई बार जब दादी की तबीयत खराब हो जाती है तब मैं खाना पकाती हूं लेकिन हमेशा दादी ही पकाती है। साठ साल की उम्र में भी दादी खूब फुर्तीली है। सुबह जब स्कूल जाती हूं तो दादी ही मुझे प्यार से उठाते हुए कहती है, ‘उठ जा सिमरन!’ फिर मुझे नाश्ता कराकर स्कूल भेजती है। वैसे तो घर में सभी मुझे कहते है लेकिन स्कूल व दोस्तों में मुझे जानवी कहकर पुकारते है। मैं पांचवीं क्लास में पढ़ती हूँ। मेरा सपना है कि मैं बड़ी होकर टीचर बनूं। वैसे तो हर किसी के सपने होते है कुछ न कुछ बनने के लेकिन पता नहीं उनके वो सपने पूरे भी होते है या नहीं। पर मैं अपने इस सपने को पूरा करने के लिए अभी से ही जुगत में लगी हूं। पापा, घड़ी का काम करते है। पुरानी घड़ियों को नया बना देते हैं। टूटी, फूटी, बेकार ये शब्द उनके लिये कुछ भी नहीं है। इसलिये हमारे घर में घड़ियों की कोई कमी नहीं है। साथ ही साथ उनमे से कुछ बोलती घड़ियां तो हर एक घंटे के बाद में जुगलबंदी करती है। जैसे बताती हो की मेरी आवाज़ में तुझसे ज्यादा दम है। मुझे उन्हे सुनना अच्छा लगता है। पापा सुबह जाते है और रात को आते है। वैसे तो पापा हमारी हर बात मानते है लेकिन जब उन्हें गुस्सा आता है तो सभी शांति से बैठ जाते है। मम्मी जिनकी तो आज तक न मैंने शक्ल देखी है, न कभी मां का प्यार पाया है। कई बार जब औरों की मम्मी को देखती हूं तो आंखों में आंसू तो आ जाते है लेकिन देखकर मन खुश भी हो जाता है।  सोचती हूं काश मां होती और वो भी मुझे इतना ही प्यार करती। मां की कमी पहले ज्यादा खलती थी पर अब नहीं। दादी और पापा ने मां से भी बढ़ कर प्यार दिया है। शायद अगर वो भी होती तो भी दादी और पापा से बढ़कर प्यार न दे पाती। मां मुझे छोड़कर चली गई। कई बार सोच-सोच कर दम घुटता है कि वो हम दोनों भाई-बहन को छोड़कर कैसे चली गई। महीने में बुआ चक्कर लगाती रहती है। जब कभी मां की बहुत याद आती है तो बुआ से फोन पर बात कर लेते है। वैसे दादी मेरे और पवन की आंखों में आंसू आने ही नहीं देती। पापा हमारी हर ख्वाहिश को पूरा करते है।

मैं और मेरी घड़ियां अब बातें करते हैं। वो म्यूज़िक बचाती हैं और मैं उनपर अपना गाना गुनगुनाती हूँ। मैंने घड़ियों के ऊपर एक कविता भी लिखी है। पर अपने दोस्तों के अलावा कभी पापा को नहीं सुनाई। पर एक दिन सुनाऊगीं जरूर

सिमरन

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