मेरी दोनों बड़ी बहनों की शादी हो गई थी। मम्मी नानी कें घर चली गई थी, यानी हम पर निगरानी रखने वाला कोई और हमारी फरमाइशें पूरी करने वाले लोगों में से उस दिन कोई घर पर नहीं था । उस वक्त मैं लगभग चार या पाच साल की थी। सुबह तो खेल कूद मैं कब गुजर गई पता भी नहीं चला लेकिन दोपहर होते होते हमने रसोई का एक एक बर्तन टटोलना शुरू कर दिया। अब पेट में चूहे कूद रहे थे। मुझसे 2 साल बड़ा मेरा भाई कार्तिक भी बार-बार फ्रिज़ से कुछ खाने के लिए ढूँढ रहा था। लेकिन फ्रिज में भी कुछ नहीं था। बस एक टिफिन में आटा गूंदा हुआ रखा था। हम परेशान हो गए। इतने में हम दोनों से बड़ा भाई अनिकेत भी बाहर से घूम कर आ गया उसे भी भूख लगी थी तभी उदास कार्तिक कुर्सी पर से उछलकर खड़ा हो गया और अनिकेत के कंधे पर हाथ रखकर बोला, "सुन गदरू और अनिकेत भाई मुझे एक मस्त आईडिया आया है। क्यों ना हम पराठे बनाए वैसे भी आटा तो गूदा है ही और मैंने एक बार कन्चन बहन को पराठे बनाते हुए देख था।"
कार्तिक के आईडिये ने आनिकेत और मेरे अन्दर जोश जगा दिया और फिर?
भूख तो क्या-क्या करने पर मजबूर नहीं कर देती। मैंने झट से फ्रिज खोल कर आटा बाहर निकाला। अनिकेत ने गैस पर तवा चढाया और कार्तिक ने लपक कर कुलर बन्द कर दिया। अब हम तीनों ने फटाफट अपनी जिम्मेदारी बांट ली। अनिकेत लोई बनाएगा। मैं पराठा बैलूगी। और कार्तिक घी लगाकर उसे सेकेगा।
योजना के मुताबिक हम तीनों ने कमर कस ली। अनिकेत ने अपने स्टाईल में लोई शुरू कर दि और मैं उस लोई को पूरी मेहनत के साथ बेलने लगी। वह कभी लम्बी हो जाती तो कभी चोकोर पर कम्बख्त गोल नहीं होती। हमने बहुत कोशिश की और आखिरकार मैं कुछ हद तक गोल पराठा बेल पाई। अब बारी कार्तिक की थी। उसने पहले से ही तवे पर घी डाल दिया था और जब तक पराठा उसके पास पहुंचा तब तक घी काफी गरम हो चुका था। कार्तिक बड़े ही सलिखे से हथेलियों पर को नचाता हुआ खड़स हुआ और पूरी ताकत से पराठे को खोलते हुए तवे पर दे मारा और कूद कर पंलग पर चढ गया। पराठा जैसे ही तवे पर गिरा छुन सी आवाज के साथ सारा घी मेरे घुटनों पर और अनिकेत के हाथों पर आया। हम दोनों तेजी से चीखकर पीछे के तरफ खिसक गए। पूरे कमरे में तेल की घसक और घूआ फैल गया। थोडी देर के लिए तो लगा। सब एक सपना है पर फिर मेरी सिसकियां सुनाई दी और अनिकेत का चेहरा पीला पड़ गया। मानो उसे कुछ नहीं सुझा रहा था। जले पर पानी डालने वाली कहावत थोड़ी-थोड़ी याद आई तो वह जनाब उठा आधी बालटी भर कर पानी मुझपर उढेल दिया। मैं कपड़ों समेत पूरी गिली हो गई। इससे पहले कुछ समझ पाती। उसने मुझे प्यार से सहलाना शुरू कर दिया और बोला, "कुछ नहीं हुआ चुप हो जा। सब ठीक हो जाएगा।" कहकर उसने मुझे तैयार करना शुरू का दिया शायद उसे डर था कि मम्मी मेरी चोट देखेगी तो उसे बहुत डांट पड़ेगी इसलिए जब तक शाम के साढे चार भी बज गये थे और मम्मी का घर आना हुआ। उसने मुझे बिलकुल साफ और सुन्दर बनाकर चुपचाप बैठा दिया। मम्मी ने सबसे पहले मुझे देखा और फिर बाद में पूरे घर को। उन्हे पूरा घर साफ दिखा। वो हमें मुस्कुराता देख थोड़ा रूकी और फिर शक़ के कारण किचन में गई। वहां पर तो सारा उन्हे एक ही नज़र में मालुम पड़ने ही वाला था। तभी हमने सबसे पहले अपनी भूख की कहानी मम्मी को सुनाई और फिर बाद में सारे घर वाले यह पुरी कहानी सुनकर खुब हॅसे और हमारे पराठों की चर्चा सभी पर छाई रही।
रितिका
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