Thursday 3 October 2013

सुर्खियों में बटा मजाक

हर चर्चे निगाहें तांक कर शुरु होते और बातों में प्यार बनकर रह गुजरते। चाहें वो गली का माहौल हो या बाहर की सगंत या हो वो स्कूली दुनिया। जिसमें ये नज़ारा देखना व सुनना आम ही लगता है। जहां जब-जब इनकी सुर्खियां बढ़ती वहीं लोगों की दिल की बैचेनियां भी। किसी का नाम लब्जों पर लाकर थोड़ा मुस्कुराया तो सवाल सिर पर आ बरसते। कौन है ये? कहां रहती है? हमें नहीं मिलवाएगा क्या?

कुछ न बोलते न सुनते बस एक छोटे से नाम कि इतनी लम्बी कहानी बना देते और यहां पर कहानी बनते देर भी नहीं लगती। चाहें वो नाम किसी दोस्त का हो या परिवार के सदस्यो का हो बस, जिसे देखते ही बस इशारे बाजी शुरु हो जाती। और उस नाम को अपने से जोड़ते हुए इतराते। इन्ही लम्हों की कहानियां कभी न कभी गलियो में शरीख हो जाती है।

हाल ही में पेपरों के चलते हम सभी दोस्त एक साथ स्कूल जाते थे। पेन्ट में पैन रख और एक गत्ता पेन्ट की लुप्पी में टंगा सभी दोस्त हम टशन से निकलते। क्लास में भी एक साथ बैठते। पूरी क्लास में बस मैं, अतुल, लीलू और विक्की सबसे शरारती लड़के हैं। जब चाहा किसी के पास बैठ उस पर कई तड़तडाके छाप मारते और उन्हे किलसा देते। और सबसे खास शौक था हमारा कि अगर कहीं चॉक पड़ी मिली तो ब्लैक बोर्ड या दिवारों पर हम सभी अपना-अपना नाम लिखते। एक बार हम सभी दोस्त काफी देर से पहुंचे। अफरा-तफरी में कही और नज़रें घुमाए बिना पेपर की सीट पर निगाहे गड़ाए बैठे रहे। पैन चलता रहा और नज़रें किसी और की सीट पर टिकी रही। एक सवाल का जवाब किसी को न मिला सभी इंतजार कर रहे थे। समाजिक के सर के आने का अब तो फिक्र नहीं था। क्योंकि पास होने तक के नम्बरों तक पेपर कर ही लिया था। तो फिर तो हम यारों की टोली बन बस सब को चिड़ाने का जरिया तलाशने लगे। आज तक की मशहुर फिल्म गदर जिसके डायलॉग मन को भावुक कर देते है। मगर हम कहां ऐसे दर्शक हैं। जो किसी फिल्म को फिल्म की तरह देखे। बस उसके डायलॉग को अपनी हॅंसी -ठिठोली में शामिल कर सबको हॅसने का मस्त मौका देते हैं। जैसे कि उस फिल्म के किरदार को अपने बाकि दोस्तों को बना उन्हे हंसाने के लिए उन डायलॉगों को अपनी जान डाल देते। ताकि ये यादे हमें याद करने के लिए बनी रहें। किसी को सनी देओल बनाते तो किसी को वो हिरोईन का किरदार सोचते। फिर कोने में खड़े होकर सभी एक दूसरे पर छाप मारते जैसे -

अरी साकिया बाहर मत जा। मगर क्यूं - क्यूं पाप्पे?
क्योंकि बाहर पंजाबी तुझे मुझसे छिन लेगें।   
सकिया -क्या पाप्पे?
सनी - तेरी गाड़ी की चाबी 11 जो तेरी मा ने दी थी।




कई देर तक हम यूहीं मजाकिया दौर में हॅसतें खिलखिलाते रहे। उसी समय नज़रें दिवार पर जा भिड़ी और देखा कि बड़े -बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ’आई लव ज्योति ’ सभी ने उसे देखा और पढ़ा और आगे बढ गए पर मेरा दोस्त लीलू तो चौंक ही गया। उसे ऐसा देख सभी उसकी मजाक उड़ाने लगे। वह कभी कसमें खा रहा था कई वादे किए  मां कसम मैंने नहीं लिखा। ये सच में चेहरे से उसके पसीने छुटने लगे। बस चंद सैकेन्ड बचे थे। वो रोने ही वाला था। कहीं सर देख उसे मारे न मैं उठा और कागज से उस नाम को पौंछ कर हम उसे विश्वास के साथ दिलासा देने लेगा कि हम सर को नहीं बताएगे। वो थोड़ा खुश तो हुआ मगर उसे हमारे उपर भरोसा न था हम अपना एक पीरियड छोड़ उसे ले बाहर आए और स्कूल के बाहर बनी दिवार पर बैठ कर उस बात को छोड़ कर पेपरों के बारे में बात करने लगे। कल कौन सा पेपर है? कल तो जल्दी ही आना है। इन्हीं बातों के चलते अतुल ने लीलू के कंधे पर हाथ रख कर कहा, "भई कब मिलवाएगा? कहां रहती है?"

ये बात सुनकर तो लीलू का गुस्सा मानों इतना भड़क चुका था कि अतुल की तो हवाईयां गुल हो गई। इसी बहसबाजी के दौरान अतुल और लीलू की लड़ाई हो गई। हम इस लड़ाई को हॅसी -मजाक में ले रहे थे। अगले ही दिन जब लीलू स्कूल पहुंचा तो वो क्लास में घुसते ही परेशान  हो गया। चारों तरफ नज़र धुमाने पर देखा कि हर तरफ दिवार, दरवाजों, ब्लैकबोड पर वही ’आई लव ज्योति’ लिखा हुआ है। ये देख तो लीलू की आंखों में खून उतर आया। वह हर जगह अतुल को तलाशने लगा सभी उस नाम की परछाई को घूरती निगाहें प्यार का नाम देने लगी। सभी टीचरो के डाटने फटकारने का विषय ये नाम। बाकी साथियों के बतियाने का विषय भी। कोई समझ रहा था कि ये दोनो प्रेमी है। कोई कहता कुछ चक्कर है। कई लब्जो से बनावटी कहानियों निकल रही थी। आज स्कूल का चर्चा लीलू के साथ शुरू हुआ और खत्म इसकी कहानी पर। खुब होहल्ला स्कूल की दिवारो से गूंजता सुनाई पड़ता। ’आई लव ज्योति’ 'आई लव ज्योति’ जिस नाम को सुनने का दुख लीलू को था। उस रूह का देखने कि चाहत सभी को। आखिर ये ज्योति कौन है? जिसके चर्च आज सभी गा रहे है?

इन्ही सवालों का जवाब पाने के लिए लीलू को ढूँढा उसे क्लासों में। स्कुल की छतों पर। यहां तक बाथरूम में मगर लीलू नहीं मिला। सबकी तलाश ने पांचवे पीरियड की ओर रूख लिया। टीचरों के होते हुए सभी लीलू को याद कर उसका मजाक उड़ा अपना समय को हॅसी ठिठोली में बिता रहे थे। सबको लगा लीलू धबरा कर भाग गया है। 6 बजे सभी छुटटी होने पर घर की ओर रवाना हुए। लीलू की खबर किसी को नहीं थी। उसका बैग भी क्लास में उसकी सीट पर पड़ा हुआ था। मैंने बैग उठाकर अपने कन्धे पर टाका और चल दिया लीलू के घर की तरफ ।
अगले दिन जब मैं स्कूल पहुँचा तो देखा। गोल दायरे बनाए खड़े लड़कों की भीड ने हमें चौंका दिया। मेरे कदम तो ठहर नहीं पाए। मैं फटाक से उस भीड में घुस गया। देखते ही चौंक गया अतुल और लीलू की धूआं धार लड़ाई हो रही थी। मैं देखते ही चौंक गया सभी उस लड़ाई का लुफ्त उठा रहे थे। चारों तरफ उड़ती मिट्टी, गलियो में गुहार लगा रहीं थी। सभी सुन रहे थे। किसी को इस लड़ाई की वज़ह पता नहीं थी।

हमारे एक छोटे से मज़ाक ने दो पक्के दोस्तों को अलग कर दिया था और लीलू को भी। वो बहुत उदास रहने लगा। हम सबसे दूर हो गया। ऐसा लगा की हर मजाक का एक दायरा होता है। वो खुशियां बरसाने के लिये होता है ना कि किसी को चुप करने के लिये।

अनिकेत

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