Saturday 6 August 2011

मैं नीलम


उसने मुझसे पुछा, "आप यहाँ नये हो?”
मैंने पूरी जगह मे नज़रें घुमाते हुये कहा, “मेरी यहाँ पर तीसरी मुलाकात है, पहले भी कई बार आ चुकी हूँ पर कई साल पहले।"
उसने पूछा, “यहाँ क्यों आई हो कुछ सिखाने?”
हमारे साथ बैठे एक शख़्स ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया। मैंने कहा, “कुछ सिखाने नहीं आ‍ई बल्कि इस जगह पर आना मुझे अच्छा लगता है।"
तुम यहाँ पर कबसे आ रही हो?” मैंने उससे फिर सवाल किया।
उसने अपने पोलीबैग को एक तरफ रखते हुए कहा, “दो दिन हुए है मुझे यहाँ आते हुए।"
"यहाँ पर क्या चीज़ है जो तुम्हे यहाँ तक ले आई" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
उसने कहा, “मैंने कई से, यहाँ के बारे मे सुना है पर समय ही नहीं मिलता था की यहाँ पर आ पाऊँ। लेकिन अब बच्चे की छुट्टियाँ हैं तो समय मेरे पास बच गया है। इसलिये सोचा की इन दो महीने मे कुछ सिखा जाये।"
"यहाँ पर क्या करोगी?” मैंने उससे पुछा।
मुझे सोफ्टवेयर सिखना है।" उसने कहा।
सोफ्टवेयर मे क्या?” मैंने पूछा।
वो कुछ रूक गई सोचने लगी और फिर बोली, “मुझे कुछ नहीं पता कम्पयूटर के बारे में, मैं कुछ नहीं जानती। बस लोगों के मुहँ से सुना है, सोफ्टवेयर, हार्डवेयर, लिखा हुआ देखा है सोफ्टवेयर हार्डवेयर। मैंने ये भी सुना है कि कहीं जोब करों तो इससे जुड़ी चीजें मागते हैं, लेकिन मुझे इसका जीरो भी नहीं पता, क्या सिखना है मुझे, ये मैं नहीं जानती।"
मैंने कहा, “टाइपिंग से स्टार्ट करोगी?”
उसने कहा, “हाँ, हिन्दी या अंग्रेजी दोनों ही मैं सिखना चाहती हूँ।"
मैंने उसकी पोलीबेग देखते हुए कहा, “तुम्हारी नोटबुक कहाँ है?”
उसने कहा, “उसका क्या करना है?”
मैंने कहा, “हिन्दी की टाइपिंग करोगी तो क्या टाइप करोगी?”
उसने कहा, “कहीं से भी कोई भी पेज उठा लुंगी, कर लुंगी।"
मैंने कहा, “कहीं से भी कुछ क्यो उठाओंगी? अपना लिखकर टाइप करों, उसी मे तो मज़ा है।"
उसने कहा, “नहीं बाबा, मुझे लिखना अच्छा नहीं लगता। मैं लिखना नहीं चाहती।"
मैंने कहा, “क्यों लिखना क्यों नहीं चाहती, क्यों अच्छा नहीं लगता?”
उसने कहा, “मुझे लिखना बोर लगता है। अपने बेटे को पढ़ाती हूँ उतना ही बहुत है।"
मैंने उससे कहा, “अच्छा, तुम करती क्या हो?”
उसने कहा, “मैं 5 बजे उठ जाती हूँ।"
मैंने कहा, “ये तो आपका रूटीन है। आप करती क्या हो?”
उसने कहा, “मैं अपने बेटे को स्कूल छोड़कर आती हूँ, घर का काम करती हूँ, खाना बनाती हूँ।"
मैंने कहा, “ये तो बना बनाया रूटीन है, जो किसके लिये है, कौन करवा रहा है पता ही नहीं है, ये तो एक से दूसरे मे शिफ्ट हो रहा है। तुम क्या करती हो?”

फिर उसने सोचा, वो कुछ देर चुप रही।

मैंने उससे कहा, “आपका बेटा आपको कैसे जानता है?”
उसने कहा, “कैसे जानता है क्या? मैं उसकी माँ हूँ उसे पता है।"
मैंने कहा, “इस रिश्ते से नहीं।"
उसने कहा, “फिर?”
मैंने कहा, “आपकी सास आपको बहू के रिश्ते से जानती है, पती पत्नी के, बेटा मां के क्या ये बहुत है जीने के लिये? इसके अलावा कुछ नहीं चाहिये?”
उसने कहा, “मै खुश हूँ इसमें, मुझे अच्छा लगता है ये।"
मैंने कहा, “जब आपका बेटा बड़ा होगा और आपका परिचय किसी को देगा तो आप क्या चाहोगे की वो आपके बारे मे क्या बोले? कि ये मेरी मां है, इसने मुझे पालपोस कर बड़ा किया है बस, या इसके अलावा भी कुछ और होगा?”

वो थोड़ी रूक गई और सोचने लगी।

उसने कहा, “मैं अपने बेटे की बहुत अच्छी दोस्त हूँ।"
मैंने कहा, “कब तक, 20 साल तक, 22 साल तक उसके बाद क्या?”
उसने एक जिन्दादिली के साथ कहा, “मैं हमेशा रहूँगी।"
मैंने कहा, “हर माँ बाप ये सोचते हैं कि वे अपने बच्चे के बहुत अच्छे दोस्त हैं पर एक उम्र तक आते आते बच्चा अपने रिश्ते और अपनी जगह खुद तलाशने और बनाने लगता है।"
उसने कहा, “वो मुझसे कुछ नहीं छुपाता और न कभी छुपायेगा।"
मैंने कहा, “अभी तो सब कुछ बताता है लेकिन जब बड़ा होगा, उसके दोस्त बनेगे, उसका दायरा बड़ेगा तब वो शेयरिग के लिये खास लोग तलाशेगा शायद उसमे आप न हो। घर और परिवार से दूर वो अपनी चीज़ें बांटने की जगह बनाये। क्योंकि बहुत सी बातें होगी जो वो आपको नहीं बताना चाहेगा।"
उसने कहा, “हाँ मैं मानती हूँ ऐसा होगा।"
मैंने कहा, “फिर अपने आपको आप कैसे तलाश रही हो, एक ही रिश्ता क्यों चाहती हो की सब आपको एक ही रिश्ते से जाने? क्या कभी लगता नहीं है के शायद अब अपने जीने के तरीके पर हमें सोचना होगा?'
उसने कुछ सोचते हुए बोला, “मैं ज्वैलरी बनाना सिखाती हूँ, मुखे ब्यूटीशियन का कोर्स भी आता है और सिलाई भी।"
मैंने कहा, “आपसे जो लडकियाँ सिखने आती हैं उनसे आप क्या चाहते हो की वो आपको कैसे जाने? मां, बीवी, बहू इस रिश्ते से या कुछ और है?”
उसने कहा, “मैं नहीं चाहती और न ही इस बारे मे मैं उनसे कोई बात करती। वो मुझे मेरे हूनर से जाने बस, मैं यही चाहती हूँ।"
"कोई हमें हमारे हुनर से जाने, ये कितना उत्साह भर देता है हममें?” मैंने कहा।
वो बहुत एनर्जी के साथ बोली, “हाँ, अपने आपको एक नई पहचान मिलती है। मैं पहले बाहर नहीं निकलती थी, नौ साल हो गये हमारी शादी को, मैं सिर्फ अपने बेटे को स्कूल छोडने और लेने जाती थी। मगर अभी दो महीनो से, मैंने जो सीखकर छोड दिया था। उसी को अपने जीने के तरीके मे ले आई हूँ। अब मुझसे लड़कियाँ घर में सीखने भी आती हैं और मैं बाहर जाकर भी सिखाती हूँ।"
"आपको लगा है कि इससे दायरा बड़ा है?” मैंने पूछा।
उसने कहा, “हाँ, मुझे काफी लोग जानने लगे हैं मेरे सिखाने के रिश्ते से।"
घर में सभी इस बदलाव से खुश होगें?” मैंने कहा।
उसने कहा, ““हां सास,ससुर को तो इतना क्या पता लेकिन जब मैं इन्हें फोन पर बताती हूँ तो ये बहुत खुश होते हैं।"
मैंने कहा, “फोन पर क्यों?”
उसने कहा, “वो बाहर रहते हैं ना।"
कहाँ?” मैंने कहा।
उसने कहा, “कलकत्ता। हमारी शादी के दूसरी साल ही वो काम के सिलसिले में वहां चले गये।"
मैंने कहा, “तो उन्हें ख़त लिखती हो?”
नहीं। हमारी तो फोन पर बात हो जाती हो।" उसने कहा।
मैंने कहा, “तुम्हें नही लगता की तुम्हें ख़त लिखना चाहिये?”
उसने कहा, “मैंने कहा तो मुझे लिखना अच्छा नही लगता।"
मैंने कहा, “मैं लिखने के लिये नही बोल रही मैं ख़त के लिये बोल रही हूँ।"
उसने कहा, “नही मुझे तो फोन बेहतर लगता है।"
मैंने कहा, “पर मुझे तो लगता है कि खत के जरिये हमारे पास सारी बातें सैव हो जाती हैं जिन्हे जब चाहो पढ़कर ताज़ा कर लो।"
उसने कहा, “नही फोन पर हुई बातों में भी बहुत मज़ा होता है। मैं कभी खाना बना रही होती हूं और इनकी कोई भी बात याद आ जाती है तो हंस देती हूँ।"
मैंने कहा, “क्या दो महीने पहले हुई बात जस की तस आपको याद रहती है?”
उसने कहा, “नही कुछ-कुछ भूल जाते है।"
मैंने कहा, “और छह महीने बाद कुछ-कुछ से ज्यादा भूल जाते हैं शायद।"
हाँ ऐसा तो होता है।" उसने कहा।
मैंने कहा, “ये जो भूलने की क्षमता है वो कमाल की है तभी तो हमारे साथ हुई घटना ज्यादा समय तक ताज़ी नही रहती अगर ऐसा न हो तो शायद हम उसी दर्द में अकेले रह जाये।"
उसने कहा, “हाँ ये तो सही है अगर ऐसा न हो तो हम कोई रिश्ता भी नही बना पायेगें।"

उसने बहुत देर देखने के बाद मे मुझसे पूछा, “आपका नाम क्या है?”
मेरा नाम यशोदा है। और आपका?
वो बोली, “मै नीलम।"


दक्षिणपुरी 23 मई 2011
यशोदा

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