Friday, 17 April 2015

एक रात जो गुजरी ही नहीं

रात के करीब 12 या 12:30 बज रहे थे। घर के अंदर काफी शांति थी। हम सभी घरवाले बहुत ही आराम से सो रहे थे। तभी एक जोरदार आवाज़ हुई। हम सभी की आँख एक ही झटके से खुल गई। सभी जल्दी से नीचे की ओर भागे। जैसे ही नीचे उतरे तो देखा की पूरे घर में खून ही खून बिखरा हुआ है। कुछ देर के लिए सभी थम से गए। थोड़ी देर के लिए घर में शांति सी बिखर गई। इतने में मम्मी के ज़ोरों से रोने की आवाज़ आई। मम्मी ने अपने साथ में खड़ी अपनी बेटी को कहा, जा अपने चाचा को बुला ला” सभी घर वाले एक जगह पर आकर इकट्ठा हो गए। फिर से पापा को खून की उल्टी होने लगी।

मम्मी ने जमीन पर गिरे पापा का सिर पकड़ कर अपनी गोद में रख लिया। इतने में चाचा भी आ गए और बोले, “अभी तो ऑटो भी नहीं मिलेगा, क्या करे?”

दादा जी गुस्सा दिखते हुये बहुत ज़ोर से, पापा के सिर को कसकर पकड़कर बोले, “और पी ले, साले कितना मना किया था न। दारू मत पी, फिर भी नहीं माना।“   

तभी चाचा बोले, “मैं अपने दोस्त को फोन करता हूँ।“

पर फोन नहीं लगा। चाचा भाग कर अपने दोस्त के घर चले गए। घर में फिर से वही सुबकना शुरू हो गया था। खून था की रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। सभी घर वाले पापा को ताने मारने लगे। “और जा उन दारुबाज़ दोस्तों के साथ। उन्ही ने तो तुझे फिर से पीना सिखाया है। इतना कहते ही चाचा घर आ गए और कहने लगे, “चलो बाहर ऑटो खड़ा है।“ ये सुनते ही मम्मी ने पापा का हाथ अपने कान्धो पर रखा और उन्हे ऑटो तक ले गई। पीछे से चाची बोली, “दीदी तुम ऑटो में जाओ, मैं कशिश के पापा के साथ स्कूटर से आ जाऊँगी।“

पापा और मम्मी ऑटो में चले गए। दादी और बुआ दोनों ही रोने लगे। बड़ा भाई बोला, ईशिका चल मेरे साथ बाइक पर। मैं बहुत ज्यादा रो रही थी इसलिए मुझे भी भाई अपने साथ ले जाने को कह रहा था। अस्पताल में सभी कुछ ही देर बाद ही पहुँच गए। घर पर जैसे कोई भी नहीं रुका था। सभी कैसे न कैसे अस्पताल ही आ गए थे। जैसे ही पापा को अस्पताल के गेट पर लेकर खड़े हुये, वैसे ही पापा की आंखे बंद होने लगी। मम्मी, पापा के गालों को सहलाने लगी। रात के समय में भी अस्पताल में काफी भीड़ थी। बहुत सारे लोग तो कुरशियों पर बैठे, बैठे सो गए थे और कुछ अभी पर्ची बनवाने की लाइन में लगे थे। चाचा पूरे में नजर घूमते हुये बोलो, “यहाँ तो काफी समय लग जाएगा।“ चाचा, अंदर तरफ में अकेले ही चले गए। हम में से किसी को भी नहीं मालूम था की पापा को लेकर कहाँ जाना है। तो चाचा ने कहा, “मैं अंदर पूछताछ करके आता हूँ। लेकिन चाचा गए और एक ही पल में आ गए, आकर बोले, “अंदर को कोई भी नहीं है, साले सो रहे होगे।“

पापा की हालत इतनी खराब लग रही थी की सभी उन्हे एमर्जेंसी में ले गए। जैसे ही वो एमर्जेंसी में गए तो वहाँ के डाक्टर ने कहा, “इनका काफी सारा खून उल्टी के जरिये निकल गया है। इन्हे कम से कम दो बोतल खून चढाना होगा।

इतना कहकर उन डाक्टर ने पापा को एक बड़े के बेड पर लिटा लिया और उनके पेट में कुछ डाल कर, अपने पास में रखे कम्प्युटर में देखने लगे। कुछ देर के बाद में वो बाहर आए और हम सब से कहा, “इन्हे दो दिन यहीं पर रहना होगा।“

ये सुनते ही सभी एक दूसरे को घूरने लगे। तभी चाचा ने कहा, “सभी चले जाओ। मैं और सागर यहीं पर रुक जाएगे।“

पीछे खड़ी मम्मी ने आगे आकर कहा, “तुम्हारे साथ में भी रुकूँगी।“    

कुछ देर तक सभी एक दूसरे से यही कहते रहे की कौन रुकेगा। लेकिन अंत में सभी चले गए। पापा के पास में मम्मी, चाचा और सागर भैया ही रुके। वो काले रंग की कुरशियों पर जाकर बैठ गए जो एक साथ में जुड़ी हुई थी।

हम जैसे ही घर आए तो दादी भाग कर आई और कहने लगी, “बॉबी कहा है? अरे कुछ बोलो तो।“

मगर सभी चुप थे। चाची ने कहा, “मम्मी उन्हे दो दिन के लिए वहीं एड्मिट कर लिया है। हालत तो बहुत ही खराब है।“ ये सुनकर दादी रोने लगी। उनकी रोने की आवाज़ सुन पड़ोसी भी वहीं आगे। और बोले, “अरी क्यों रो रही है इंद्रा? कुछ बता तो सही। रोने से कुछ हल थोड़ी हो जायेगा।“ दादी ने रोते रोते कहा, “बॉबी को खून की उल्टियाँ हो रही हैं। अस्पताल में लेकर गए है। कह रहे है की उसे दो दिन वहीं पर रखेगे।“

“पर उसने तो दारू छोड़ दी थी।“
“अरी कहा छोड़ी, उस कुमार के साथ में रह कर फिर से पीना शुरू कर दिया।“
“चल कोई नहीं चूप हो जा। अब रोने से थोड़ी न सब ठीक हो जाएगा।“

ये कहते हुये सभी अपने घर चले गए। सुबह के 4 बज चुके थे। लेकिन हमारे घर तो ऐसा लग रहा था जैसे अभी रात बीती ही नहीं है। 


ईशिका

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