घंटी की आवाज़ और बच्चों के हो-हल्ले के साथ
आधी छुट्टी होने का पैग़ाम मिल गया। अपने-अपने डेस्क छोड़ फर्राटे से भागते हुए
रोज़ की तरह मैंने और मेरी सहेलियों की टोली ने इमली खेलने का ठिकाना घेर लिया।
कुछ साथी खेल को देखने के लिए ख़ाली डेस्कों पर जा बैठे, तो कुछ ने खड़े होने के लिए अपने
ठिकाने चुन लिए और खेल शुरू हो गया। मेरी टीम की दूसरी बारी थी पर मुझे
अपनी बारी आने का बेहद इंतज़ार था। खेल के बीच कई आवाज़ें भी शामिल हुई। कोई आगाह करते हुए कहता, ”भई कपड़ा लगना आउट नहीं हैं तो कोई
मेरी तरह ‘ठीक है’ कहकर खेल को आगे बढ़ाता। ये मज़ेदार सफ़र शुरू हो चुका था। कुछ पक्के खिलाडि़यों
के पास जीतने का जोश था तो कुछ की कमज़ोरी उनके चेहरे पर एक घबराहट बनकर छाई हुई थी। फिर
भी वो इस खेल का मज़ा लेना चाहती थीं। उसकी टीम के सदस्यों ने उसे दिलासा देते हुए
कहा, ”कोई बात नहीं, हम सब संभाल लेंगे।“ बारम्बार ये साथी तेजी से भागते हुए
आते और हमारे हाथों को पार कर जाते। जब उस टीम की ख़ातिर खिलाड़ी शिल्पा ने रोज़ की तरह आज भी हमारे चार
हाथों की ऊँचाई को आसानी से पार कर लिया, तो
आसपास खड़े तमाशबीनों ने ताली पीटते हुए कहा, ”वाह!
शिल्पा तो पक्की खिलाड़ी है।“ इस वाहवाही भरे दौर के बाद, उस टीम के खिलाड़ी एक बार फिर से छलाँग
लगाने को तैयार थे। इस बीच कुछ साथी खिलाडि़यों ने फिसलने या रपटने के डर से जूते
उतारकर कोने में रख दिए। फिर दूसरा खिलाड़ी तेजी से भागता हुआ आया। सभी की नज़रें
जैसे उसके क़दमों पर टिकी थीं। मुझे लगा कि अभी ये हमारे हाथों को पार कर शायद उस पार खड़ी मिलेगी, पर इमली के नज़दीक पहुँचते ही उसके
क़दम थम गए। इस नज़ारे को देख सभी जोर-जोर से हँसने लगे। वह हाँफते हुए बोली, ”मुझे डर लग रहा है, इमली थोड़ी नीचे बनाओ।“ पर मैं नहीं मानी। मैंने कहा, “हमने इमली बिल्कुल ठीक बनाई है, अब हम इसे नीचा नहीं करेंगे।“ आखि़रकार मेरी जीत हुई। लेकिन मेरे
सब्र का दायरा जैसे टूटता ही जा रहा था। दिल करता कि मैं भी इमली पर से छलाँग
लगाऊँ, पर दूसरी टीम के खिलाड़ी आउट होने का
नाम ही नहीं ले रहे थे। खैर, मेरा
ये इंतज़ार, कब इस मस्ती भरे माहौल का मज़ा लेने
लगा, मुझे पता ही नहीं चला। कभी नाला, तो कभी मंदिर बनाने में भी शायद मैं इस खेल का हिस्सा बनती चली जा
रही थी। तभी एक नयी खिलाड़ी, यानि
रजनी तेजी से भागती हुई आई और हमारे हाथों के उस पार हो गई। उसके पैर का अंगूठा मेरे हाथ की कलाई को छू गया।
उसकी इस छलाँग के तुरन्त बाद मैंने ज़ोर से
चिल्लाना शुरू किया, ”रजनी आउट हो गई, रजनी आउट हो गई“ और माहौल शोरगुल से भर गया।
”हाँ
भई, रजनी का अँगूठा छुआ है।“ लेकिन रजनी और उसकी टीम के खिलाड़ी ऐसा
मानने को तैयार नहीं थे।
वे कहते, ”तुम्हारी
टीम की बारी नहीं आई इसलिए तुम हमें चीटिंग से हराना चाहती हो।“ मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा, ”ठीक है, मैं खेलूँगी ही नहीं। मेरी टीम भी मेरे साथ थी।“ पर शिल्पा की टीम को अपनी बारी लेनी थी
इसलिए वे मान गए और इस रूठने-मनाने के बाद हम इमली बनाने बैठ गए। अब दूसरी टीम की
आखि़री खिलाड़ी यानी शिल्पा ही बची थी। कुछ तमाशबीन ”शिल्पा-शिल्पा“ चिल्लाकर उसका हौसला बढ़ा रहे थे। उसकी नज़रों में भी एक आत्मविश्वास भरा था। मैं उसको देख रही थी। वह तेजी
से भागती हुई आई। जैसे ही उसने छलाँग लगाने के लिए अपना पैर उठाया वह मेरे माथे
में आ लगा और मेरा सिर चकरा गया। सभी हँसने लगे। वहाँ खड़े तमाशबीनों ने मुझे घेर लिया।
कोई कहता, ”कोई
बात नहीं, खेल-खेल में लग जाती है“ तो कोई मेरा माथा मसलता। शिल्पा “सॉरी, सॉरी“ कहकर मुझे मना रही थी। दोस्तों की इन
बातों से जब मेरा मन बहल गया और याद आया की शिल्पा आउट हो गई है तो मैं सब कुछ भूलकर
खेल के मैदान में उतर गई। खेल के इस अंतिम दौर में भी मेरा जोश बरक़रार था और मैं ऊँची-ऊँची छलाँग
लगाते हुए जीत की तरफ़ बढ़ रही थी। खेल देख रहे लोग जब मुझे वाहवाही देते तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहता। तभी घंटी की
आवाज़ सुनाई दी और आधी छुट्टी ख़त्म हो गई। मुझे पूरी तरह न खेलने का अफ़सोस तो
हुआ पर कल इस खेल में पहली बारी मेरी होगी- ये सोच मुझे एक तसल्ली हो रही थी।
टीना
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